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ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

अपने दिल का हाल यारो (ग़ज़ल)

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ग़ज़ल- अपने दिल का हाल यारो  ग़ज़लकार- शमशेर बहादुर सिंह ग़ज़ल का आरंभ  अपने दिल का हाल यारो, हम किसी से क्या कहें; कोई भी ऎसा नहीं मिलता जिसे अपना कहें। हो चुकी है जब ख़त्म अपनी ज़िन्दगी की दास्ताँ उनकी फ़रमाइश हुई है, इसको दोबारा कहें! आज इक ख़ामोश मातम-सा हमारे दिल में है: ख़ाब के से दिन हैं, वर्ना हम इसे जीना कहें। यास! दिल को बांध, सर पर जल्द साया कर, जुनूँ दम नहीं इतना जो तुमसे साँस का धोका कहें। देखकर आख़ीर वक़्त उनकी मौहब्बत की नज़र हम को याद आया वो कुछ कहना जिसे शिकवा कहें। उनकी पुरहसरत निगाहें देख कर रहम आ गया वर्ना जी में था कि हम भी हँस के दीवाना कहें। काफ़िले वालो, कहाँ जाते हो सहरा की तरफ़, आओ बैठो तुमसे हम मजनूँ का अफ़साना कहें। मुश्कबू-ए-जुल्फ़ उसकी, घेर ले जिस जा हमें, दिल ये कहता है, उसी को अपना काशाना कहें। धन्यवाद 🙏

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