संदेश

हिंदी साहित्य और लेखन कला लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

पत्र साहित्य

चित्र
पत्र-साहित्य  पत्र लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। आधुनिक युग में पाश्चात्य प्रभाव के कारण 'पत्र - साहित्य' एक नवीन विधा के रूप में प्रचलित है। पत्र - लेखन एक आत्मीय वार्तालाप है, जो दूरस्थ दो या अनेक व्यक्तियों को समान संवेदनात्मक धरातल पर ला देता है। मध्ययुग में पत्र अलंकृत शैली में विद्वता प्रकट करने की परंपरा थी आधुनिक युग में पत्र बातचीत की शैली में लिखा जाता है और उसके सहज व आत्मीयतापूर्ण होने पर बल दिया जाता है। हिंदी में साहित्यकारों या अन्य महान विभूतियों के पत्रों को प्रकाशित करने की परंपरा है, जैसे - 'द्विवेदी पत्रावली' (बैजनाथ सिंह 'विनोद') 'पद्म सिंह शर्मा के पत्र' (बनारसीदास चतुर्वेदी और हरिशंकर शर्मा), 'साहित्यिकों के पत्र' (किशोरीदास बाजपेयी), भिक्षु के पत्र (भदंत आनंद कौसल्यायन), 'अनमोल पत्र' (सत्यभक्त स्वामी), 'यूरोप के पत्र' (डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा) , 'निराला के पत्र '  (जानकी बल्लभ शास्त्री) इत्यादि। 'मित्र संवाद' डॉ रामविलास शर्मा और उनके मित्र केदारनाथ अग्रवाल के मध्य हुए पत्र-व्य...

राजभाषा

चित्र
राजभाषा  14 सितम्बर, 1949 ई को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गई है।  भारतीय संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343-351 तक राजभाषा का संविधान में प्रावधान किया गया है तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है – असमिया बंगला  बोडो  डोगरी  गुजराती  हिंदी  कन्नड़  कश्मीरी  कोंकणी मैथिली मलयालम मणिपुरी  मराठी नेपाली  उड़िया  पंजाबी  संस्कृत संथाली सिंधी  तमिल  तेलुगु उर्दू  मूल संविधान में 14 भाषाएँ थीं। संविधान (21वाँ संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा सिंधी के जोड़े जाने पर यह संख्या 15 हो गई थी। 71वें संशोधन अधिनियम, 1992 से कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी को सम्मिलित कर दिए जाने पर यह संख्या 18 हो गई है। 92वें संशोधन अधिनियम 2003 ने इसमें बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को सम्मिलित कर दिया है। जिससे अब यह संख्या बढ़कर 22 हो गई है। 

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

चित्र
 सभी हिंदी प्रतियोगियों के लिए महत्वपूर्ण  💐"उद्दात्तता" काव्य का मूल स्रोत्र है - लोंजाइनस 💐त्रासदी का लक्ष्य है - भावों का विरेचन एवम यथार्थ का ज्ञान 💐"कला आशयजन्य नहीं है" - अरस्तू 💐चौपाई में 16 मात्राएं, दोहा और सोरठा में 24 मात्राएं, उल्लाला में 28 मात्राएं एवम हरिगीतिका में भी 28 मात्राएं होती हैं। 💐'दण्डक' किसे कहते हैं - वर्ण वृत्त में 26 वर्ण से अधिक वाले दण्डक कहलाते हैं। 💐"स्वछंद छंद में 'आर्ट ऑफ म्यूजिक' नहीं मिल सकता, वहां 'आर्ट ऑफ रीडिंग' है, वह स्वर प्रधान नहीं व्यंजन प्रधान है" - निराला 💐मुक्त छंद की कल्पना हिंदी में विधिवत किस युग में प्रारम्भ हुई - छायावाद 💐'लीव्स ऑफ द ग्रास' पुस्तक किसकी है - वाल्ट व्हिटमैन 💐छंद में लय क्या है - लय एक संयत व्यवस्था है जो स्वर के आरोह-अवरोह से उत्पन्न होती है। 💐छंदशास्त्र को अन्य किस नाम से जानते हैं - पिंगलशास्त्र 💐दोषों के लक्षणों का विवेचन सर्वप्रथम किसने किया - वामन 💐"मुख्यार्थ का जिससे अपकर्ष हो वह दोष है" - मम्मट 💐"गुण काव्य की ...

आदर्श प्रेम (कविता)

चित्र
कविता - आदर्श प्रेम  कवि - हरिवंशराय बच्चन कविता का आरंभ  प्यार किसी को करना लेकिन कह कर उसे बताना क्या अपने को अर्पण करना पर और को अपनाना क्या गुण का ग्राहक बनना लेकिन गा कर उसे सुनाना क्या मन के कल्पित भावों से औरों को भ्रम में लाना क्या ले लेना सुगंध सुमनों की तोड़ उन्हें मुरझाना क्या प्रेम हार पहनाना लेकिन प्रेम पाश फैलाना क्या त्याग अंक में पले प्रेम शिशु उनमें स्वार्थ बताना क्या दे कर हृदय हृदय पाने की आशा व्यर्थ लगाना क्या धन्यवाद 🙏

बहुत दिनों से (कविता)

चित्र
कविता - बहुत दिनों से  कवि - गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का आरंभ  मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से बहुत-बहुत सी बातें तुमसे कहना चाह रहा था और कि साथ यों साथ-साथ फिर बहना बहना बहना मेघों की आवाज़ों से कुहरे की भाषाओं से रंगों के उद्भासों से ज्यों नभ का कोना-कोना है बोल रहा धरती से जी खोल रहा धरती से त्यों चाह रहा कहना उपमा संकेतों से रूपक से, मौन प्रतीकों से मैं बहुत दिनों से बहुत-बहुत-सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना! जैसे मैदानों को आसमान, कुहरे की मेघों की भाषा त्याग बिचारा आसमान कुछ रूप बदलकर रंग बदलकर कहे। धन्यवाद 🙏

सच न बोलना (कविता)

चित्र
कविता - सच न बोलना  कवि - नागार्जुन कविता का आरंभ  मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को! जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा! सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा! जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है! बंद सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे।  ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का, फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका! बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे! भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे! ज़मींदार है, साहुकार है, बनिया है, व्योपारी है, अंदर-अंदर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है! सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मंदिर एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर! छुट्टा घूमें डाकू गुंडे, छुट्टा घूमें हत्यारे, देखो, हंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे! जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा, काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा! माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं! ...

प्रेम नई मनः स्थिति (कविता)

चित्र
कविता - प्रेम नई मनः स्थिति कवि -  रघुवीर सहाय कविता का आरंभ  दुखी दुखी हम दोनों आओ बैठें  अलग अलग देखें , आँखों में नहीं हाथ में हाथ न लें हम लिए हाथ में हाथ न बैठे रह जाएँ बहुत दिनों बाद आज इतवार मिला है ठहरी हुई दुपहरी ने यह इत्मीनान दिलाया है।  हम दुख में भी कुछ देर साथ रह सकते हैं। झुँझलाए बिना , बिना ऊबे अपने अपने में , एक दूसरे में, या  दुख में नहीं, सोच में नहीं  सोचने में डूबे। क्या करें? क्या हमें करना है? क्या यही हमे करना होगा क्या हम दोनो आपस ही में निबटा लेंगे  झगड़ा जो हममे और हमारे सुख में है।  धन्यवाद 🙏

सखि वे मुझसे कह कर जाते (कविता)

चित्र
कविता - सखि वे मुझसे कह कर जाते  कवि - मैथिलीशरण गुप्त कविता का आरंभ  सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते? मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना? मैंने मुख्य उसी को जाना जो वे मन में लाते। सखि, वे मुझसे कहकर जाते। स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में - क्षात्र-धर्म के नाते  सखि, वे मुझसे कहकर जाते। हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा, किसपर विफल गर्व अब जागा? जिसने अपनाया था, त्यागा; रहे स्मरण ही आते! सखि, वे मुझसे कहकर जाते। नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते, पर इनसे जो आँसू बहते, सदय हृदय वे कैसे सहते ? गये तरस ही खाते! सखि, वे मुझसे कहकर जाते। जायें, सिद्धि पावें वे सुख से, दुखी न हों इस जन के दुख से, उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ? आज अधिक वे भाते! सखि, वे मुझसे कहकर जाते। गये, लौट भी वे आवेंगे, कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे, रोते प्राण उन्हें पावेंगे, पर क्या गाते-गाते ? सखि, वे मुझसे कहकर जाते। धन्यवाद 🙏

हिंदी साहित्य में प्रमुख दर्शन

चित्र
प्रमुख दर्शन अद्वैतवाद ------------------------- शंकराचार्य  विशिष्टाद्वैतवाद --------------------- रामानुजाचार्य  द्वैतवाद –------------------------------- माधवाचार्य  द्वैताद्वैतवाद --------------------------- निंबार्क  शुद्धाद्वैतवाद ------------------------- बल्लभाचार्य  मीमांसा दर्शन -------------------------- जैमिनी सांख्य दर्शन --------------------------- कपिलमुनि  योगदर्शन ------------------------------- पतंजलि  न्यायदर्शन –---------------------------- गौतम वैशेषिक दर्शन -------------------------- कणाद  चर्वाक (लोकायत) दर्शन ------------ म्वार्हस्पत्य जैन दर्शन (स्यादवाद) -------------- पार्श्वनाथ  संघातवाद (क्षणिकवाद) –----------- गौतमबुद्ध  धन्यवाद 

मुझे कदम-कदम पर (कविता)

चित्र
कविता - मुझे कदम-कदम पर  कवि - गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का आरंभ  मुझे कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं बांहें फैलाए! एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटतीं, मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ, बहुत अच्छे लगते हैं उनके तजुर्बे और अपने सपने सब सच्चे लगते हैं, अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है, मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ, जाने क्या मिल जाए! मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है, हर एक छाती में आत्मा अधीरा है प्रत्येक सस्मित में विमल सदानीरा है, मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य पीडा है, पलभर में मैं सबमें से गुजरना चाहता हूँ, इस तरह खुद को ही दिए-दिए फिरता हूँ, अजीब है जिंदगी! बेवकूफ बनने की खातिर ही सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ, और यह देख-देख बडा मजा आता है कि मैं ठगा जाता हूँ हृदय में मेरे ही, प्रसन्नचित्त एक मूर्ख बैठा है हंस-हंसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है, कि जगत स्वायत्त हुआ जाता है। कहानियां लेकर और मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते जहां जरा खडे होकर बातें कुछ करता हूँ उपन्यास मिल जाते । धन्यवाद 🙏

सब जीवन बीता जाता है (कविता)

चित्र
कविता - सब जीवन बीता जाता है  कवि - जयशंकर शंकर प्रसाद  कविता का आरंभ  सब जीवन बीता जाता है धूप छाँह के खेल सदॄश सब जीवन बीता जाता है समय भागता है प्रतिक्षण में, नव-अतीत के तुषार-कण में, हमें लगा कर भविष्य-रण में, आप कहाँ छिप जाता है सब जीवन बीता जाता है बुल्ले, नहर, हवा के झोंके, मेघ और बिजली के टोंके, किसका साहस है कुछ रोके, जीवन का वह नाता है सब जीवन बीता जाता है वंशी को बस बज जाने दो, मीठी मीड़ों को आने दो, आँख बंद करके गाने दो जो कुछ हमको आता है सब जीवन बीता जाता  धन्यवाद 🙏

यह वादा है मेरा (कविता)

चित्र
कविता - यह वादा रहा है मेरा  कवयित्री - हिंदी साहित्य और लेखन कला (रोशमीन अंसारी)  कविता का आरंभ  एहसास समेट कर  रखूंगी राज़ बनाकर दिल में रखूंगी जो भी वक़्त साथ बिताया है उसे मुस्कान बनाकर रखूंगी आँखों में सज़ा कर रखूंगी  सिर पर बैठाकर रखूंगी  रिश्ता तो बेनाम है हमारा पर अलग रिश्ता बनाकर रखूंगी अपनी दुआ में याद रखूंगी  साथ बीते पल ताज़ा रखूंगी  जहाँ कहीं ज़रूरत पड़ेगी वहाँ अपना सबकुछ रखूंगी धन्यवाद 🙏

निराशावादी (कविता)

चित्र
कविता- निराशावादी  कवि- रामधारी सिंह "दिनकर" कविता का आरंभ  पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास । क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ? तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है? बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो । धन्यवाद   🙏

अपने दिल का हाल यारो (ग़ज़ल)

चित्र
ग़ज़ल- अपने दिल का हाल यारो  ग़ज़लकार- शमशेर बहादुर सिंह ग़ज़ल का आरंभ  अपने दिल का हाल यारो, हम किसी से क्या कहें; कोई भी ऎसा नहीं मिलता जिसे अपना कहें। हो चुकी है जब ख़त्म अपनी ज़िन्दगी की दास्ताँ उनकी फ़रमाइश हुई है, इसको दोबारा कहें! आज इक ख़ामोश मातम-सा हमारे दिल में है: ख़ाब के से दिन हैं, वर्ना हम इसे जीना कहें। यास! दिल को बांध, सर पर जल्द साया कर, जुनूँ दम नहीं इतना जो तुमसे साँस का धोका कहें। देखकर आख़ीर वक़्त उनकी मौहब्बत की नज़र हम को याद आया वो कुछ कहना जिसे शिकवा कहें। उनकी पुरहसरत निगाहें देख कर रहम आ गया वर्ना जी में था कि हम भी हँस के दीवाना कहें। काफ़िले वालो, कहाँ जाते हो सहरा की तरफ़, आओ बैठो तुमसे हम मजनूँ का अफ़साना कहें। मुश्कबू-ए-जुल्फ़ उसकी, घेर ले जिस जा हमें, दिल ये कहता है, उसी को अपना काशाना कहें। धन्यवाद 🙏

परदे में क़ैद औरत की गुहार (गीत)

चित्र
गीत- परदे में क़ैद औरत की गुहार  गीतकार- भारतेंदु हरिश्चंद्र  * यह गीत भारतेन्दु जी की रचना ‘मुशायरा’ से लिया गया है।  गीत का आरंभ  लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो। सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥ लहँगा दुपट्टा नीको न लागै। मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो।। वै गोरिन हम रंग सँवलिया। नदिया प बँगला छवाय नाहीं देत्यो॥ सरसों का उबटन हम ना लगइबे। साबुन से देहियाँ मलाय नाहीं देत्यो॥ डोली मियाना प कब लग डोलौं। घोड़वा प काठी कसाय नाहीं देत्यो॥ कब लग बैठीं काढ़े घुँघटवा। मेला तमासा जाये नाहीं देत्यो॥ लीक पुरानी कब लग पीटों। नई रीत-रसम चलाय नाहीं देत्यो॥  गोबर से ना लीपब-पोतब। चूना से भितिया पोताय नाहीं देत्यों।। खुसलिया छदमी ननकू हन काँ। विलायत काँ काहे पठाय नाहीं देत्यो॥ धन दौलत के कारन बलमा। समुंदर में बजरा छोड़ाय नाहीं देत्यो॥ बहुत दिनाँ लग खटिया तोड़िन। हिंदुन काँ काहे जगाय नाहीं देत्यो॥ दरस बिना जिय तरसत हमरा। कैसर का काहे देखाय नाहीं देत्यो॥ ‘हिज्रप्रिया’ तोरे पैयाँ परत है। ‘पंचा’ में एहका छपाय नाहीं देत्यो॥ धन्यवाद 🙏

विचार आते है (कविता)

चित्र
कविता - विचार आते हैं  कवि - गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का आरंभ  विचार आते हैं लिखते समय नहीं बोझ ढोते वक़्त पीठ पर सिर पर उठाते समय भार परिश्रम करते समय चांद उगता है व पानी में झलमलाने लगता है हृदय के पानी में विचार आते हैं लिखते समय नहीं पत्थर ढोते वक़्त पीठ पर उठाते वक़्त बोझ साँप मारते समय पिछवाड़े बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त पत्थर पहाड़ बन जाते हैं नक्शे बनते हैं भौगोलिक पीठ कच्छप बन जाती है समय पृथ्वी बन जाता है धन्यवाद 🙏

कदम मिलाकर चलना होगा (कविता)

चित्र
कविता - कदम मिलाकर चलना होगा कवि - अटल बिहारी बाजपेई कविता हुई का आरंभ  बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा. कदम मिलाकर चलना होगा हास्य-रूदन में, तूफानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा कदम मिलाकर चला होगा उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा कदम मिलाकर चलना होगा सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा कदम मिलाकर चलना होगा कुछ कांटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा क़दम मिलाकर चलना होगा धन्यवाद 🙏

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी (कविता)

चित्र
कविता- जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी  कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान कविता का आरंभ  सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,  गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,  दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।  चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,  बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥  कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,  लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,  नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,  बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,  बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,  देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,  नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,  सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़। ...

प्रेम (कविता)

चित्र
कविता - प्रेम  कवि - सुमित्रानंदन पंत कविता का आरंभ  मैंने गुलाब की मौन शोभा को देखा ! उससे विनती की तुम अपनी अनिमेष सुषमा को शुभ्र गहराइयों का रहस्य मेरे मन की आँखों में खोलो ! मैं अवाक् रह गया ! वह सजीव प्रेम था ! मैंने सूँघा, वह उन्मुक्त प्रेम था ! मेरा हृदय असीम माधुर्य से भर गया ! मैंने गुलाब को ओंठों से लगाया ! उसका सौकुमार्य शुभ्र अशरीरी प्रेम था ! मैं गुलाब की अक्षय शोभा को निहारता रह गया ! धन्यवाद 🙏

यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो (कविता)

चित्र
कविता- यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो (कविता)  कवयित्री - महादेवी वर्मा  यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो  रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर, गये आरती वेला को शत-शत लय से भर, जब था कल कंठो का मेला, विहंसे उपल तिमिर था खेला, अब मन्दिर में इष्ट अकेला, इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो! चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली, प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली, झर सुमन बिखरे अक्षत सित, धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित  तम में सब होंगे अन्तर्हित, सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो! पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया, प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया, सांसों की समाधि सा जीवन, मसि-सागर का पंथ गया बन रुका मुखर कण-कण स्पंदन, इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो! झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी, जब तक लौटे दिन की हलचल, तब तक यह जागेगा प्रतिपल, रेखाओं में भर आभा-जल दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो! धन्यवाद 🙏

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शिवशंभू के चिट्ठे (निबंध), बालमुकुंद गुप्त

ईदगाह (प्रेमचंद)

मेरे राम का मुकुट भीग रहा है

निराशावादी (कविता)

हिंदी रचना पर आधारित फिल्में