ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

हिंदी साहित्य में प्रमुख दर्शन

प्रमुख दर्शन



अद्वैतवाद ------------------------- शंकराचार्य 
विशिष्टाद्वैतवाद --------------------- रामानुजाचार्य 
द्वैतवाद –------------------------------- माधवाचार्य 
द्वैताद्वैतवाद --------------------------- निंबार्क 
शुद्धाद्वैतवाद ------------------------- बल्लभाचार्य 
मीमांसा दर्शन -------------------------- जैमिनी
सांख्य दर्शन --------------------------- कपिलमुनि 
योगदर्शन ------------------------------- पतंजलि 
न्यायदर्शन –---------------------------- गौतम
वैशेषिक दर्शन -------------------------- कणाद 
चर्वाक (लोकायत) दर्शन ------------ म्वार्हस्पत्य
जैन दर्शन (स्यादवाद) -------------- पार्श्वनाथ 
संघातवाद (क्षणिकवाद) –----------- गौतमबुद्ध 

धन्यवाद 

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