ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

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हमारी कोशिश यह भी रहती है कि आपको हर विषय पर संपूर्ण जानकारी मिल जाए और आपको जानकारी प्राप्त करने के लिए इधर-उधर ना भटकना पड़े।


ब्लॉगर परिचय

मेरा नाम रोशमीन अंसारी है और मैं नई दिल्ली में रहती हूं। मैंने एम.ए इग्नू से की है और साथ के साथ मैंने इग्नू से क्रिएटिव राइटिंग में डिप्लोमा भी किया है। मैंने  इग्नू से ही बुक पब्लिशिंग का डिप्लोमा भी किया है।  

हिंदी मेरा पसंदीदा विषय है मुझे हिंदी व्याकरण,  हिंदी भाषा, हिंदी साहित्य पढ़ना और पढ़ाना पसंद है, इसलिए मैं कुछ ना कुछ प्रतिदिन पढ़ती रहती हूं। मेरा एक भी दिन बिना पढ़े नहीं गुजरता है। मुझे पढ़ाने का भी शौक है इसलिए मैं ट्यूशन भी पढ़ाती हूं।

 मेरा मानना है कि जैसे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है वैसे ही दिमाग के लिए प्रतिदिन कुछ ना कुछ पढ़ना आवश्यक है।

 धन्यवाद

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