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ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

राजभाषा

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राजभाषा  14 सितम्बर, 1949 ई को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गई है।  भारतीय संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343-351 तक राजभाषा का संविधान में प्रावधान किया गया है तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है – असमिया बंगला  बोडो  डोगरी  गुजराती  हिंदी  कन्नड़  कश्मीरी  कोंकणी मैथिली मलयालम मणिपुरी  मराठी नेपाली  उड़िया  पंजाबी  संस्कृत संथाली सिंधी  तमिल  तेलुगु उर्दू  मूल संविधान में 14 भाषाएँ थीं। संविधान (21वाँ संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा सिंधी के जोड़े जाने पर यह संख्या 15 हो गई थी। 71वें संशोधन अधिनियम, 1992 से कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी को सम्मिलित कर दिए जाने पर यह संख्या 18 हो गई है। 92वें संशोधन अधिनियम 2003 ने इसमें बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को सम्मिलित कर दिया है। जिससे अब यह संख्या बढ़कर 22 हो गई है। 

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