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ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

प्रपद्यवाद (नकेनवाद) (1956 ईस्वी)

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प्रपद्यवाद (नकेनवाद)  (1956 ईस्वी)  आपका हिंदी  साहित्य और लेखनकला में स्वागत..... जैसाकि आपको जानकारी है  हिंदी में अनेक वाद उदाहरण के लिए छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद,  हालावाद इसी तरह एक अन्य वाद है प्रपद्यवाद।  आज हम इसी वाद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य पढ़ेगें प्रपद्यवाद का प्रवर्तन नलिन विलोचन शर्मा ने सन् 1956 में प्रकाशित नकेन के प्रपद्यवाद संकलन से किया है। प्रपद्यवाद को 'नकेनवाद' भी कहा जाता है क्योंकि इसमें बिहार के 3 कवि नलिन विलोचन शर्मा केसरी कुमार और नरेश के नाम के प्रथम अक्षरों को आधार मानकर बनता है। प्रपद्यवाद और प्रयोगवाद में मूल अंतर यह है कि प्रपद्यवाद प्रयोग को साध्य मानता है जबकि प्रयोगवाद प्रयोग को साधन मानता है। आचार्य नंददुलारे वाजपेई ने प्रपद्यवाद के संबंध में लिखा है नकेनवाद जिसे उसके हिमायतियों ने प्रपद्यवाद भी कहा है। वास्तव में प्रयोगशीलता का एक अतिवाद था। प्रयोगवाद के प्रवक्ताओं ने जो कुछ नया कहा था उससे संतुष्ट ना होकर उसे तार्किक सीमा तक पहुंचाने का कार्य नकेन 1, नकेन 2  नामक संग्रह की भूमिका में दिखाई पड़ा थ...

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