संदेश

राधिकारमण सिंह लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

कानों में कंगना (कहानी)

चित्र
कहानी- कानों में कंगना लेखक- राधिकारमण सिंह प्रकाशन-१९३१ इंदू पत्रिका में प्रकाशित हुई।  पात्र-  नरेंद्र की पत्नी (किरण) , योगीश्वर की इकलौती पुत्री किरण, मोहन नरेंद्र का दोस्त विषय- कहानी का विषय है स्त्री की सामाजिक स्थिति का वर्णन , पुरूष की निर्बध्द प्रवृति, वासना और प्रेम में अंतर, प्रकृति के माध्यम से प्रेम उजागर किया गया है कहानी का आरंभ  किरन! तुम्हारे कानों में क्या है?" उसके कानों से चंचल लट को हटाकर कहा - "कँगना।" "अरे! कानों में कँगना?" सचमुच दो कंगन कानों को घेरकर बैठे थे। "हाँ, तब कहाँ पहनूँ?" किरन अभी भोरी थी। दुनिया में जिसे भोरी कहते हैं, वैसी भोरी नहीं। उसे वन के फूलों का भोलापन समझो। नवीन चमन के फूलों की भंगी नहीं; विविध खाद या रस से जिनकी जीविका है, निरन्तर काट-छाँट से जिनका सौन्दर्य है, जो दो घड़ी चंचल चिकने बाल की भूषा है - दो घड़ी तुम्हारे फूलदान की शोभा। वन के फूल ऐसे नहीं। प्रकृति के हाथों से लगे हैं। मेघों की धारा से बढ़े हैं। चटुल दृष्टि इन्हें पाती नहीं। जगद्वायु इन्हें छूती नहीं। यह सरल सुन्दर सौरभमय जीवन हैं। ...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शिवशंभू के चिट्ठे (निबंध), बालमुकुंद गुप्त

ईदगाह (प्रेमचंद)

मेरे राम का मुकुट भीग रहा है

निराशावादी (कविता)

हिंदी रचना पर आधारित फिल्में