ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

रिपोर्ताज

रिपोर्ताज


रिपोर्ताज गद्य की अत्याधुनिक विधा है । इसका विकास सन 1936 ईस्वी के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के समय पश्चात्य प्रभाव से हुआ ।

रिपोर्ताज में लेखन किसी घटना का विवरण साहित्यिक शैली में इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि जिसे पढ़कर पाठक भावविभोर हो जाता है।

हिंदी में रिपोर्ताज विधा के जनक शिवदान सिंह चौहान माने जाते हैं। इनका प्रथम रिपोर्ताज 'लक्ष्मीपुरा', 'रूपाभ' पत्रिका (1938 ई) में प्रकाशित हुआ था।

रिपोर्ताज के प्रचार-प्रसार में 'हंस' पत्रिका का सर्वाधिक योगदान है। इसी पत्रिका में शिवदान सिंह चौहान ने 'मौत के खिलाफ जिंदगी की लड़ाई' शीर्षक रिपोर्ट लिखा था जिसमें स्वतंत्रता पूर्व देश की स्थिति का विवरण है।

'हंस' पत्रिका में 'समाचार और विचार' तथा 'अपना देश' स्तंभों के अंतर्गत विभिन्न लेखकों के रिपोर्ताज प्रकाशित होते रहे। 

'विशाल भारत' में रांगेयराघव के  रिपोर्ताज 'अदम्य जीवन' शीर्षक से प्रकाशित होते थे 

द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में भयंकर अकाल पड़ा और महामारी का प्रकोप भी हुआ। रांगेयराघव भयानक दृश्य को स्वयं देखने गए । वहां उन्होंने क्षुधापीड़ित अकाल/महामारी से मरते हुए नर-नारियों और उनकी विवशता का लाभ उठाते शोषक पूंजीपतियों, व्यवसायियों के अमानवीय कृत्यों को देखा और उन दृश्यों के मार्मिक एवं हृदय विदारक जो 'तूफानों के बीच' शीर्षक से प्रकाशित हुए।

प्रकाशचंद्र गुप्त के 'स्वराज्य भवन', 'अल्मोड़े का बाजार' और 'बंगाल का अकाल' आदि उल्लेखनीय रिपोर्ताज हैं। 

रामनारायण उपाध्याय ने व्यंग्यात्मक शैली में 'गरीब और अमीर पुस्तकें ' नामक रिपोर्ताज की रचना की।

जगदीश चंद्र जैन ने डायरी शैली में रिपोर्ताज लिखे जो 'पेकिंग की डायरी ' नाम से प्रकाशित हुए हैं।

'प्रभाकर जब पाताल गए' (प्रभाकर माचवे), 'कागज की किश्तियाँ', (लक्ष्मीचंद्र जैन), 'मैं छोटानागपुर में हूं' (कामता प्रसाद सिंह), 'देश की मिट्टी बुलाती है' (भदन्त आनंद कौसल्यायन), 'युद्धयात्रा' (धर्मवीर भारती),  'प्लाट का मोर्चा ' (शमशेर बहादुर सिंह)  हिंदी के उल्लेखनीय रिपोर्ताज हैं।

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