ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

महादेवी वर्मा का परिचय

महादेवी वर्मा का परिचय 


 (क) काव्य संग्रह

1. नीहार-1930 ई. 2. रश्मि – 1932 ई. 3. नीरजा – 1935 ई.
4. सांध्यगीत -1936 ई. 5. दीपशिखा – 1942 ई. 6. सप्तपर्णा – 1960 ई.

 ट्रिकः नेहा रानी सादी सप्त 

प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ –

1. स्मृति की रेखाएँ 2. पथ के साथी 3. शृंखला की कङियाँ
4. अतीत के चलचित्र
 (ख) समेकित काव्य संग्रह
1. यामा – 1940 ई. (इसमें नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत रचनाओं में संगृहीत सभी गीतों को समेकित रूप में एक जगह संकलित कर दिया गया है।)
पुरस्कार – 1. इस ’यामा’ रचना के लिए इनको 1982 ई. में ’भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ एवं ’मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ था।

2. ’नीरजा’ रचना के लिए ’सेकसरिया पुरस्कार’ मिला था।
विशेष तथ्य –
⇒ महादेवी वर्मा को ‘हिन्दी की विशाल मन्दिर की वीणा पाणी’ कहा जाता है।
⇒ ‘इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी जो लोकोत्तर है। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ है और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना ,यह नहीं कहा जा सकता।’- महादेवी के सन्दर्भ में यह कथन किसका है ?
⇒ आचार्य शुक्ल

1. ये आरंभ में ब्रज भाषा में कविता लिखती थीं, बाद में खङी बोली में लिखने लगी एवं जल्दी ही इस क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली।

2. इन्होंने ’चाँद’ नामक पत्रिका का संपादन कार्य किया था।

3. हिन्दी लेखकों की सहायतार्थ इन्होंने ’’साहित्यकार संसद’’ नामक एक ट्रस्ट (संस्था) की स्थापना की थी।

4. इन्हें ’वेदना की कवयित्री’ एवं ’आधुनिक युग की मीरां’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

5. ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रही है।

6. भारत सरकार द्वारा इनको ’पद्म भूषण’ से अलंकृत किया गया था।

7. इनके काव्य में अलौकिक विरह की प्रधानता देखी जाती है।

8. इनका ’सप्तपर्णा’ काव्य संग्रह वैदिक संस्कृत के विविध काव्यांशों पर आधारित माना जाता है। इसमें ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है।

9. महादेवी के भाव पक्ष के गम्भीर्य व विचार पक्ष के औदात्य की भाँति उनके काव्य का शैली पक्ष भी अत्यन्त प्रौढ़ व सशक्त है। 

10. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है – ’’छायावादी कहे जाने वाले कवियों में महादेवीजी ही रहस्यवाद के भीतर रही हैं।’’

11. इनके द्वारा रचित गीतों (कविताओं) की कुल संख्या 236 मानी जाती है।

12. इनको धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान अपनी धर्मपरायणा माता ’हेमरानी देवी’ से प्राप्त हुआ था।

13. ग्यारह वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह डाॅ. रूपनारायण वर्मा के साथ हुआ था ।

14. इन्होंने अपनी पहली कविता मात्र सात वर्ष की अल्पायु में लिख डाली थी।

15. विरह की प्रांजल अनुभूति, परिष्कृत चिंतन, काव्योचित गंभीरता और सौन्दर्यशिल्प इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ मानी जा सकती है।

धन्यवाद 🙏

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