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ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

मेरे राम का मुकुट भीग रहा है

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ललित निबंध  - मेरे राम का मुकुट भीग रहा है लेखक - विद्यानिवास मिश्र प्रकाशन -१९७४ विषय- अकारण चिंता  लेखक की उदासीनता  मुकुट प्रतीक राम और कौशल्या की उपमा निर्वासन का परिणाम  लोगों की धारणा सीता का दोहरा निर्वासन  सही स्थिति का ज्ञान  महीनों से मन बेहद-बेहद उदास है। उदासी की कोई खास वजह नहीं, कुछ तबीयत ढीली, कुछ आसपास के तनाव और कुछ उनसे टूटने का डर, खुले आकाश के नीचे भी खुलकर साँस लेने की जगह की कमी, जिस काम में लगकर मुक्ति पाना चाहता हूँ, उस काम में हज़ार बाधाएँ; कुल ले-देकर उदासी के लिए इतनी बड़ी चीज नहीं बनती। फिर भी रात-रात नींद नहीं आती। दिन ऐसे बीतते हैं, जैसे भूतों के सपनों की एक रील पर दूसरी रील चढ़ा दी गई हो और भूतों की आकृतियाँ और डरावनी हो गई हों। इसलिए कभी-कभी तो बड़ी-से-बड़ी परेशानी करने वाली बात हो जाती है और कुछ भी परेशानी नहीं होती, उल्टे ऐसा लगता है, जो हुआ, एक सहज क्रम में हुआ; न होना ही कुछ अटपटा होता और कभी-कभी बहुत मामूली-सी बात भी भयंकर चिंता का कारण बन जाती है। अभी दो-तीन रात पहले मेरे एक साथी संगीत का कार्यक्रम सुनने के लिए न...

नाखून क्यों बढ़ते है

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नाखून क्यों बढ़ते है          निबंध  हजारी प्रसाद द्विवेदी   बच्‍चे कभी-कभी चक्‍कर में डाल देनेवाले प्रश्‍न कर बैठते हैं। अल्‍पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ दिया कि आदमी के नाखून क्‍यों बढ़ते हैं, तो मैं कुछ सोच ही नहीं सका। हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्‍चे कुछ दिन तक अगर उन्‍हें बढ़ने दें, तो माँ-बाप अक्‍सर उन्‍हें डॉटा करते है। पर कोई नहीं जानता कि ये अभागे नाखून क्‍यों इस प्रकार बढ़ा करते है। काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्‍वीकार कर लेंगे, पर निर्लज्‍ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर। आखिर ये इतने बेहया क्‍यों हैं? कुछ लाख ही वर्षों की बात है, जब मनुष्‍य जंगली था, वनमानुष जैसा। उसे नाखून की जरूरत थी। उसकी जीवन रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्‍त्र थे। दाँत भी थे, पर नाखून के बाद ही उनका स्‍थान था। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ना पड़ता था। नाखून उसके लिए आवश्‍यक अंग था। फिर धीरे-धीरे वह अपने अंग से बाहर की वस्‍तुओं का सहारा लेने लगा। पत्‍थर के ...

राही (सुभद्रा कुमारी चौहान)

राही लेखिका-सुभद्रा कुमारी चौहान  पात्र- अनीता (समाजसुधारक), राही (चोरी के कारण जेल में) विषय- गरीबी का चित्रण, गरीबी की विवशता, देश की दरिद्रता, राष्टभक्ति और सत्ताभक्ति, मानवीयता का सबसे धर्म, स्त्री वेदना  की झलक कहानी का आरंभ  तेरा नाम क्या है?  राही तुम्हें किस अपराध में सजा हुई?  चोरी की थी सरकार। चोरी? क्या चुराया था? नाज की गठरी।  कितना अनाज था?  होगा पाँच छह सेर।  और सजा कितने दिन की है?  साल भर की।  तो तूने चोरी क्यों की?   मजदूरी करती तब भी दिन भर में तीन-चार आने पैसे मिल जाते। हमें मजदूरी नहीं मिलती सरकार। हमारी जाति माँगरोरी है। हम केवल मांगते-खाते है। और भीख न मिले तो? तो फिर चोरी करते है। उस दिन घर में खाने को नहीं था। बच्चे भूख से तड़प रहे थे। बाजार में बहुत देर तक माँगा। बोझा ढ़ोने के लिए टोकरा लेकर भी बैठी रही। पर कुछ नही मिला। सामने किसी का बच्चा रो रहा था। उसे देखकर मुझे अपने भूखे बच्चे की याद आ गई। वहीं पर किसी की अनाज की गठरी रखी हुई थी। उसे लेकर अभी भाग ही रही थी कि पुलिस ने पकड़ लिया। अनीता- फिर त...

कहानी- एक टोकरी भर मिट्टी (माधवराव सप्रे)

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एक टोकरी भर मिट्टी    लेखक- माधवराव सप्रे  प्रकाशन- १९०३ पात्र- जमीदार, अनाथ विधवा बुढ़िया, पुत्री (बेटे की) पोती विषय- इस कहानी में  विधवा बुढ़िया  का निर्मल मन, कर्तव्य ही श्रेष्ठ है, धन का गर्व, जमींदारी का अहंकार, भ्रष्ट वकील का संकेत, सुखद अंत, मानवता की जीत दिखाई गई है।  कहानी किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्‍छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्‍या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धाकाल में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट-फूट रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्‍छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्‍न निष्‍फल हुए, तब वे अपनी जमींदा...

ईदगाह (प्रेमचंद)

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  ईदगाह प्रकाशन -१९३३ विषय- इस कहानी के विषय है भ्रष्टाचारी पुलिस की यंत्रणा, गरीबी की की स्थिति, हामिद की  बुद्धिववाददी तर्क, अपराध बोध न होकर जीवन बोध की कहानी है  पात्र- हामिद, अमीना,  मोहमद, मोहसिन, नूरे, सम्मी  रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गॉंव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियॉँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पेदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना, दोपहर के पहले लोटना असम्भव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुश...

दुनिया का अनमोल रत्न, प्रेमचंद

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दुनिया का सबसे अनमोल रत्न   प्रेमचंद  प्रकाशन -१९०७ यह कहानी उर्दू 'जमाना' पत्रिका, कानपुर सोज़ेवतन कहानी संग्रह में छपी थी  विषय-इस कहानी में देशप्रेम की भावना है, जवानों की कुर्बानी की भावना है, प्रेम का आदर्श स्वरूप है, सच्चा प्रेम है, तीन रत्नों की बात कही गई है।  पात्र-दिलफिगार (प्रेमी), दिलफरेब (प्रेमिका)  पहला रत्न- चोर का आँसू जो पश्चाताप और पछतावे का है दूसरा रत्न- चिता की राख जो प्रेमियों के सच्चे प्रेम का प्रतीक है तीसरा रत्न - हिंदुस्तान के वीर योद्धा के सिपाही का आखरी खून की बूंद जो देशप्रेम का प्रतीक है यही अनमोल रत्न है  दिलफ़िगार एक कँटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किये बैठा हुआ खून के आँसू बहा रहा था। वह सौन्दर्य की देवी यानी मलका दिलफ़रेब का सच्चा और जान देने वाला प्रेमी था। उन प्रेमियों में नहीं, जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेश में माशूक़ियत का दम भरते हैं। बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फ़िदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फ़रियाद मचाते फिरते हैं। दिलफ़रेब ने उससे कहा था कि अगर तू मेरा सच...

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