ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

मैथिलीशरण गुप्त, मैथिलीशरण गुप्त की महत्वपूर्ण रचनाएँ, महत्वपूर्ण तथ्य

मैथिलीशरण गुप्त, मैथिलीशरण गुप्त की महत्वपूर्ण रचनाएँ, महत्वपूर्ण तथ्य


मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगांव झांसी सन् 1886 ई में हुआ। 

इनके पिता का नाम रामशरण दास और इन के गुरु का नाम महावीर प्रसाद द्विवेदी है।

इनकी प्रथम कविता 'हेमंत' 1905 ई में प्रकाशित हुई थी और प्रथम काव्य संग्रह 'रंग में भंग' 1999 ई में प्रकाशित हुआ।

इन्हें आधुनिक युग का 'तुलसी' भी स्वीकार किया गया है।

हिंदी साहित्य में 'रामचरितमानस' के बाद इनके द्वारा लिखा गया 'साकेत' को रामकाव्य का दूसरा स्तंभ माना जाता है।

मैथिली शरण गुप्त को 'साकेत' रचना की मूल प्रेरणा सन् 1988 ई में 'सरस्वती पत्रिका' में महावीर द्विवेदी के लेख कवियों की 'उर्मिला विषयक-उदासीनता' से मिली।

यह लेख महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपने छद्मनाम 'भुजंग भूषण भट्टाचार्य' नाम से प्रकाशित कराया।

साकेत शब्द मूलत: पालि भाषा का शब्द है जिसका अर्थ अयोध्या है।

साकेत में 12 सर्ग है

साकेत को डॉ नगेन्द्र ने 'जनवादी' काव्य कहा है 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने गुप्त जी को 'सामंजस्यवादी' कवि कहा है 

मैथिलीशरण गुप्त को भारत भारती रचना की मूल प्रेरणा 'मुसद्दसे हाली' तथा ब्रजमोहन दत्तात्रेय कैफी कृत 'भारत दर्पण' पुस्तक से प्राप्त हुई 

मैथिलीशरण गुप्त ने स्वयं को 'कौटुंबिक कविमात्र' कहा है।

इन्हें महात्मा गांधी ने 'राष्ट्रकवि' की उपाधि दी।

मैथिली शरण गुप्त द्वारा अनूदित काव्य प्लासी का युद्ध, मेघनाथ वध, वृत्र संहार है

मैथिलीशरण गुप्त बांग्ला कवि माइकल मधुसूदन दत्त की रचनाओं का 'मधुप' उपनाम से अनुवाद किया।

गुप्त जी ने मार्क्स की पुत्री 'जैनी' पर 'जयिनी' नामक काव्य लिखा है।

गुप्त जी को द्विवेदी काल में 'हरिगीतिका' छंद का बादशाह कहा जाता है।


मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित प्रमुख काव्य ग्रंथ निम्नलिखित हैं-
रंग में भंग 1909 ई
जयद्रथ वध 1910 ई
किसान 1917 ई
विकट भट 1929 ई
गुरुकुल 1929 ई
साकेत 1931 ई
भारत भारती 1912 ई
झंकार 1929 ई
यशोधरा 1932 ई
जय भारत 1952 ई
विष्णु प्रिया 1957 ई
सिद्धराज 1936 ई
हिंदू 1927
वैतालिक 
पंचवटी 1925

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