ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

यह दीप अकेला (कविता)

कविता- यह दीप अकेला 

कवि - अज्ञेय

प्रकाशन- नई दिल्ली  'आल्पस कहवा घर'  (18 अक्टूबर, यह 1953) बावरा अहेरी में हुआ

कविता का आरंभ 

यह दीप अकेला स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता पर 
इसको भी पंक्ति को दे दो 

यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा 
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा? 
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा 
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित : 

यह दीप अकेला स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता पर 
इस को भी पंक्ति दे दो 

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय 
यह गोरसः जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय 
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय 
यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः 
इस को भी शक्ति को दे दो 

यह दीप अकेला स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता पर 
इस को भी पंक्ति दे दो 

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा, 
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा, 
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में 
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र, 
उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा 
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय 
इस को भक्ति को दे दो 

यह दीप अकेला स्नेह भरा 
है गर्व भरा मदमाता पर 
इस को भी पंक्ति दे दो 

निष्कर्ष - व्यक्ति और समाज को जोड़कर लिखा है। 

सर्जनशील व्यक्ति का लाभ समाज को होना चाहिए।

सर्जनशील और रचनाकार के गुणों का वर्णन।

समाज को विकसित करने के लिए व्यक्ति का उपयोग करें। 

अलग-अलग प्रतीकों द्वारा व्यक्ति के गुणों की अभिव्यक्ति ।

कवि का व्यक्ति प्रतिभाशाली है। 


धन्यवाद 🙏

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