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ईश्वर की मूर्ति

ईश्‍वर की मूर्ति प्रतापनारायण मिश्र वास्‍तव में ईश्‍वर की मूर्ति प्रेम है, पर वह अनिर्वचनीय, मूकास्‍वादनवत्, परमानंदमय होने के कारण लिखने वा कहने में नहीं आ सकता, केवल अनुभव का विषय है। अत: उसके वर्णन का अधिकार हमको क्या किसी को भी नहीं है। कह सकते हैं तो इतना ही कह सकते हैं कि हृदय मंदिर को शुद्ध करके उसकी स्‍थापना के योग्‍य बनाइए और प्रेम दृष्टि से दर्शन कीजिए तो आप ही विदित हो जाएगा कि वह कैसी सुंदर और मनोहर मूर्ति है। पर यत: यह कार्य सहज एवं शीघ्र प्राप्‍य नहीं है। इससे हमारे पूर्व पुरुषों ने ध्‍यान धारण इत्‍यादि साधन नियत कर रक्‍खे हैं जिनका अभ्‍यास करते रहने से उसके दर्शन में सहारा मिलता है। किंतु है यह भी बड़े ही भारी मस्तिष्‍कमानों का साध्‍य। साधारण लोगों से इसका होना भी कठिन है। विशेषत: जिन मतवादियों का मन भगवान् के स्‍मरण में अभ्‍यस्‍त नहीं है, वे जब आँखें मूँद के बैठते हैं तब अंधकार के अतिरिक्‍त कुछ नहीं देख सकते और उस समय यदि घर गृहस्‍थी आदि का ध्‍यान न भी करैं तौ भी अपनी श्रेष्‍ठता और अन्‍य प्रथावलंबियों की तुच्‍छता का विचार करते होंगे अथवा अपनी रक्षा वा मनोरथ सिद्धि इत्‍य...

रिपोर्ताज

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रिपोर्ताज रिपोर्ताज गद्य की अत्याधुनिक विधा है । इसका विकास सन 1936 ईस्वी के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के समय पश्चात्य प्रभाव से हुआ । रिपोर्ताज में लेखन किसी घटना का विवरण साहित्यिक शैली में इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि जिसे पढ़कर पाठक भावविभोर हो जाता है। हिंदी में रिपोर्ताज विधा के जनक शिवदान सिंह चौहान माने जाते हैं। इनका प्रथम रिपोर्ताज 'लक्ष्मीपुरा', 'रूपाभ' पत्रिका (1938 ई) में प्रकाशित हुआ था। रिपोर्ताज के प्रचार-प्रसार में 'हंस' पत्रिका का सर्वाधिक योगदान है। इसी पत्रिका में शिवदान सिंह चौहान ने 'मौत के खिलाफ जिंदगी की लड़ाई' शीर्षक रिपोर्ट लिखा था जिसमें स्वतंत्रता पूर्व देश की स्थिति का विवरण है। 'हंस' पत्रिका में 'समाचार और विचार' तथा 'अपना देश' स्तंभों के अंतर्गत विभिन्न लेखकों के रिपोर्ताज प्रकाशित होते रहे।  'विशाल भारत' में रांगेयराघव के  रिपोर्ताज 'अदम्य जीवन' शीर्षक से प्रकाशित होते थे  द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में भयंकर अकाल पड़ा और महामारी का प्रकोप भी हुआ। रांगेयराघव भयानक ...

गद्यकाव्य

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गद्यकाव्य 'गद्यकाव्य' गद्य की ऐसी विधा है, जिसमें कविता जैसी रसमयता,  रमणीयता, चित्रात्मकता और संवेदनशीलता होती है । हिंदी में रायकृष्णदास गद्यकाव्य के जनक माने जाते हैं।इन्होंने अनेक आध्यात्मिक गद्यकाव्यों की रचना की। गद्यकाव्य की सर्वप्रथम रचना रामाकृष्णदास की 'साधना' (1916 ई) है।  साधना, संलाप, प्रवाल, छायावाद आदि रामाकृष्ण दास के मुख्य गद्यकाव्य संग्रह है। गद्यकाव्य, रचना की प्रणाम रवींद्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' के हिंदी अनुवाद से प्राप्त हुई। गद्यकाव्य का क्रमबद्ध लेखन छायावाद युग से आरंभ होता है और छायावाद युग में ही पूर्ण विकास लक्षित होता है। कुछ आलोचकों ने भारतेंदु को ही इस विधा का जनक माना है। प्रेमघन जगमोहन सिंह आदि भारतेंदु के सहयोगियों की रचनाओं में गद्यकाव्य की झलक मिलती है। बृजनंदन सहाय के 'सौन्दर्योपासक' को हिंदी का प्रथम गद्य काव्य माना जाता है। राजा राधिकारमण प्रसाद ने 'प्रेमलहरी' तथा लक्ष्मी-नारायण सिंह 'सुधांशु' ने 'वियोग' नामक गद्यकाव्य की रचना की।  वियोगीहरि के गद्यकाव्यों में 'भक्तितत्व' ...

महादेवी वर्मा का परिचय

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महादेवी वर्मा का परिचय   (क) काव्य संग्रह 1. नीहार-1930 ई. 2. रश्मि – 1932 ई. 3. नीरजा – 1935 ई. 4. सांध्यगीत -1936 ई. 5. दीपशिखा – 1942 ई. 6. सप्तपर्णा – 1960 ई.  ट्रिकः नेहा रानी सादी सप्त  प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ – 1. स्मृति की रेखाएँ 2. पथ के साथी 3. शृंखला की कङियाँ 4. अतीत के चलचित्र  (ख) समेकित काव्य संग्रह 1. यामा – 1940 ई. (इसमें नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत रचनाओं में संगृहीत सभी गीतों को समेकित रूप में एक जगह संकलित कर दिया गया है।) पुरस्कार – 1. इस ’यामा’ रचना के लिए इनको 1982 ई. में ’भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ एवं ’मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ था। 2. ’नीरजा’ रचना के लिए ’सेकसरिया पुरस्कार’ मिला था। विशेष तथ्य – ⇒ महादेवी वर्मा को ‘हिन्दी की विशाल मन्दिर की वीणा पाणी’ कहा जाता है। ⇒ ‘इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी जो लोकोत्तर है। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ है और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना ,यह नहीं कहा जा सकता।’- महादेवी के सन्दर्भ में यह कथन किसका है ? ⇒ आचार्य शुक्ल 1. ये आरंभ में ब्रज भाषा म...

भेंटवार्ता (साक्षात्कार)

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भेंटवार्ता (साक्षात्कार)  भेंटवार्ता (साक्षात्कार) विधा का आरंभ पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हुआ।  हिंदी में इस विधा का सूत्रपात बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा हुआ।  बनारसीदास चतुर्वेदी का 'विशाल भारत' (सितम्बर 1931 ई)  में 'रत्नाकरजी से बातचीत ' शीर्षक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ।  बनारसीदास चतुर्वेदी का दूसरा साक्षात्कार 'विशाल भारत' (जनवरी 1932 ई)  में 'प्रेमचंदजी के साथ दो दिन' नाम से प्रकाशित हुआ।  इसके उपरांत नवम्बर 1933 ई में पंडित श्रीराम का 'कबूतर' नामक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ।   सन् 1947 में सतेंद्र ने साधना के माध्यम से निश्चित प्रश्नावली के माध्यम से गणमान्य साहित्यकारों के हस्ताक्षर प्रकाशित किए। भेंटवार्ता विधा पर पुस्तककार प्रकाशित सबसे महत्वपूर्ण कृति डॉ पदम सिंह शर्मा की 'मैं इन से मिला' दो भागों में 1952 ईस्वी में प्रकाशित हुई थी। साक्षात्कार विधा की सर्वमान्य स्वतंत्र रचना बेनीमाधव शर्मा कृत  'कविदर्शन' मानी गई है। 'संवाद चलता रहे'- पत्रकार कृपाशंकर चौबे द्वारा दिए गए 12 कवियों, 5 निबंधकारों, 12 कथा...

हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

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  हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर  1 काव्य के तत्व माने गए है -  दो 2 महाकाव्य के उदाहरण है -  रामचरित मानस, रामायण, साकेत, महाभारत, पदमावत, कामायनी, उर्वशी, लोकायतन, एकलव्य आदि 3 मुक्तक काव्य के उदाहरण है-  मीरा के पद, रमैनियां, सप्तशति 4 काव्य कहते है -  दोष रहित, सगुण एवं रमणियार्थ प्रतिपादक युगल रचना को 5 काव्य के तत्व है -  भाषा तत्व, बुध्दि या विचार तत्व, कल्पना तत्व और शैली तत्व 6 काव्य के भेद है -  प्रबंध (महाकाव्य और खण्ड काव्य), मुक्तक काव्य 7 वामन ने काव्य प्रयोजन माना - दृष्ट प्रयोजन (प्रीति आनंद की प्राप्ति) अदृष्ट प्राप्ति (कीर्ति प्राप्ति) 8 भामह की काव्य परिभाषा है -  शब्दार्थो सहित काव्यम 9 प्रबंध काव्य का शाब्दिक अर्थ है -  प्रकृष्ठ या विशिष्ट रूप से बंधा हुआ। 10 रसात्मक वाक्यम काव्यम परिभाषा है -  पंडित जगन्नाथ का 11 काव्य के कला पक्ष में निहित होती है -  भाषा 12 काव्य में आत्मा की तरह माना गया है-  रस 13 तद्दोषों शब्दार्थो सगुणावनलंकृति पुन: क्वापि, परिभाषा है - मम्मट की 14 काव्य के...

क्यों इन तारों को उलझाते? (कविता)

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कविता - क्यों इन तारों को उलझाते?  कवयित्री - महादेवी वर्मा कविता का आरंभ  क्यों इन तारों को उलझाते? अनजाने ही प्राणों में क्यों आ आ कर फिर जाते? पल में रागों को झंकृत कर, फिर विराग का अस्फुट स्वर भर, मेरी लघु जीवन वीणा पर क्या यह अस्फुट गाते? लय में मेरा चिर करुणा-धन कम्पन में सपनों का स्पन्दन गीतों में भर चिर सुख चिर दुख कण कण में बिखराते! मेरे शैशव के मधु में घुल मेरे यौवन के मद में ढुल मेरे आँसू स्मित में हिल मिल मेरे क्यों न कहाते? धन्यवाद 🙏

पत्र साहित्य

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पत्र-साहित्य  पत्र लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। आधुनिक युग में पाश्चात्य प्रभाव के कारण 'पत्र - साहित्य' एक नवीन विधा के रूप में प्रचलित है। पत्र - लेखन एक आत्मीय वार्तालाप है, जो दूरस्थ दो या अनेक व्यक्तियों को समान संवेदनात्मक धरातल पर ला देता है। मध्ययुग में पत्र अलंकृत शैली में विद्वता प्रकट करने की परंपरा थी आधुनिक युग में पत्र बातचीत की शैली में लिखा जाता है और उसके सहज व आत्मीयतापूर्ण होने पर बल दिया जाता है। हिंदी में साहित्यकारों या अन्य महान विभूतियों के पत्रों को प्रकाशित करने की परंपरा है, जैसे - 'द्विवेदी पत्रावली' (बैजनाथ सिंह 'विनोद') 'पद्म सिंह शर्मा के पत्र' (बनारसीदास चतुर्वेदी और हरिशंकर शर्मा), 'साहित्यिकों के पत्र' (किशोरीदास बाजपेयी), भिक्षु के पत्र (भदंत आनंद कौसल्यायन), 'अनमोल पत्र' (सत्यभक्त स्वामी), 'यूरोप के पत्र' (डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा) , 'निराला के पत्र '  (जानकी बल्लभ शास्त्री) इत्यादि। 'मित्र संवाद' डॉ रामविलास शर्मा और उनके मित्र केदारनाथ अग्रवाल के मध्य हुए पत्र-व्य...

राजभाषा

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राजभाषा  14 सितम्बर, 1949 ई को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गई है।  भारतीय संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343-351 तक राजभाषा का संविधान में प्रावधान किया गया है तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है – असमिया बंगला  बोडो  डोगरी  गुजराती  हिंदी  कन्नड़  कश्मीरी  कोंकणी मैथिली मलयालम मणिपुरी  मराठी नेपाली  उड़िया  पंजाबी  संस्कृत संथाली सिंधी  तमिल  तेलुगु उर्दू  मूल संविधान में 14 भाषाएँ थीं। संविधान (21वाँ संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा सिंधी के जोड़े जाने पर यह संख्या 15 हो गई थी। 71वें संशोधन अधिनियम, 1992 से कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी को सम्मिलित कर दिए जाने पर यह संख्या 18 हो गई है। 92वें संशोधन अधिनियम 2003 ने इसमें बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को सम्मिलित कर दिया है। जिससे अब यह संख्या बढ़कर 22 हो गई है। 

पाश्चात्य साहित्य शास्त्र के सिद्धांत

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पाश्चात्य साहित्य शास्त्र के सिद्धांत  अनुकरण सिद्धांत                              प्लेटो  विरेचन सिद्धांत / त्रासदी                   अरस्तु  अभिव्यंजनावाद / उदात्तवाद              लोंजाइनस  संप्रेषणवाद / मूल्यवाद                      आई ए रिचर्ड्स  अर्थ मीमांसा सिद्धांत                        आई ए  रिचर्ड्स  अस्तित्ववाद                                     सारेन कीर्केगार्द  अभिव्यंजनावाद                                बेनेदेतो क्रोचे  स्वच्छंदतावाद          ...

शाक्ति या सौंदर्य (कविता)

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कविता -.शक्ति या सौंदर्य  कवि - रामधारी सिंह "दिनकर" कविता का आरंभ  तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ? एक बात है मुझे पूछनी, फूल बनोगे या पत्थर ? तेल, फुलेल, क्रीम, कंघी से नकली रूप सजाओगे ? या असली सौन्दर्य लहू का आनन पर चमकाओगे ? पुष्ट देह, बलवान भूजाएँ, रूखा चेहरा, लाल मगर, यह लोगे ? या लोग पिचके गाल, सँवारि माँग सुघर ? जीवन का वन नहीं सजा जाता कागज के फूलों से, अच्छा है, दो पाट इसे जीवित बलवान बबूलों से। चाहे जितना घाट सजाओ, लेकिन, पानी मरा हुआ, कभी नहीं होगा निर्झर-सा स्वस्थ और गति-भरा हुआ। संचित करो लहू; लोहू है जलता सूर्य जवानी का, धमनी में इससे बजता है निर्भय तूर्य जावनी का। कौन बड़ाई उस नद की जिसमें न उठी उत्ताल लहर ? आँधी क्या, उनचास हवाएँ उठी नहीं जो साथ हहर ? सिन्धु नहीं, सर करो उसे चंचल जो नहीं तरंगों से, मुर्दा कहो उसे, जिसका दिल व्याकुल नहीं उमंगों से। फूलों की सुन्दरता का तुमने है बहुत बखान सुना, तितली के पीछे दौड़े, भौरों का भी है गान सुना। अब खोजो सौन्दर्य गगन– चुम्बी निर्वाक् पहाड़ों में, कूद पड़ीं जो अभय, शिखर से उन प्रपात की...

नींद आती ही नहीं

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नींद आती ही नहीं...(हज़ल)  भारतेंदु हरिश्वंद्र आरंभ  हज़ल (हास्य ग़ज़ल) नींद आती ही नहीं धड़के की बस आवाज़ से तंग आया हूँ मैं इस पुरसोज़ दिल के साज से दिल पिसा जाता है उनकी चाल के अन्दाज़ से हाथ में दामन लिए आते हैं वह किस नाज़ से सैकड़ों मुरदे जिलाए ओ मसीहा नाज़ से मौत शरमिन्दा हुई क्या क्या तेरे ऐजाज़ से बाग़वां कुंजे कफ़स में मुद्दतों से हूँ असीर अब खुलें पर भी तो मैं वाक़िफ नहीं परवाज़ से कब्र में राहत से सोए थे न था महशर का खौफ़ वाज़ आए ए मसीहा हम तेरे ऐजाज़ से बाए गफ़लत भी नहीं होती कि दम भर चैन हो चौंक पड़ता हूँ शिकस्तः होश की आवाज़ से नाज़े माशूकाना से खाली नहीं है कोई बात मेरे लाश को उठाए हैं वे किस अन्दाज़ से कब्र में सोए हैं महशर का नहीं खटका ‘रसा’ चौंकने वाले हैं कब हम सूर की आवाज़ से धन्यवाद 🙏

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

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 सभी हिंदी प्रतियोगियों के लिए महत्वपूर्ण  💐"उद्दात्तता" काव्य का मूल स्रोत्र है - लोंजाइनस 💐त्रासदी का लक्ष्य है - भावों का विरेचन एवम यथार्थ का ज्ञान 💐"कला आशयजन्य नहीं है" - अरस्तू 💐चौपाई में 16 मात्राएं, दोहा और सोरठा में 24 मात्राएं, उल्लाला में 28 मात्राएं एवम हरिगीतिका में भी 28 मात्राएं होती हैं। 💐'दण्डक' किसे कहते हैं - वर्ण वृत्त में 26 वर्ण से अधिक वाले दण्डक कहलाते हैं। 💐"स्वछंद छंद में 'आर्ट ऑफ म्यूजिक' नहीं मिल सकता, वहां 'आर्ट ऑफ रीडिंग' है, वह स्वर प्रधान नहीं व्यंजन प्रधान है" - निराला 💐मुक्त छंद की कल्पना हिंदी में विधिवत किस युग में प्रारम्भ हुई - छायावाद 💐'लीव्स ऑफ द ग्रास' पुस्तक किसकी है - वाल्ट व्हिटमैन 💐छंद में लय क्या है - लय एक संयत व्यवस्था है जो स्वर के आरोह-अवरोह से उत्पन्न होती है। 💐छंदशास्त्र को अन्य किस नाम से जानते हैं - पिंगलशास्त्र 💐दोषों के लक्षणों का विवेचन सर्वप्रथम किसने किया - वामन 💐"मुख्यार्थ का जिससे अपकर्ष हो वह दोष है" - मम्मट 💐"गुण काव्य की ...

तुम हमारे हो (कविता)

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कविता - तुम हमारे हो  कवि - सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" कविता का आरंभ  नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते। ताब बेताब हु‌ई हठ भी हटी नाम अभिमान का भी छोड़ दिया। देखा तो थी माया की डोर कटी सुना वह कहते हैं, हाँ खूब किया। पर अहो पास छोड़ आते ही वह सब भूत फिर सवार हु‌ए। मुझे गफलत में ज़रा पाते ही फिर वही पहले के से वार हु‌ए। एक भी हाथ सँभाला न गया और कमज़ोरों का बस क्या है। कहा - निर्दय, कहाँ है तेरी दया, मुझे दुख देने में जस क्या है। रात को सोते यह सपना देखा कि वह कहते हैं "तुम हमारे हो भला अब तो मुझे अपना देखा, कौन कहता है कि तुम हारे हो। अब अगर को‌ई भी सताये तुम्हें तो मेरी याद वहीं कर लेना नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें प्रेम के भाव तुरत भर लेना"। धन्यवाद 🙏

व्याकरण

💐हिन्दी भाषा व्याकरण💐 हिन्दी शब्द–कोश में शब्दों का क्रम – हिन्दी शब्द–कोश में शब्दों का क्रम विभिन्न वर्णोँ के निम्न क्रम के अनुसार है– अं, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, क, क्ष, ख, ग, घ, च, छ, ज, ज्ञ, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, त्र, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह । इस प्रकार शब्द–कोश में सर्वप्रथम ‘अं’ या ‘अँ’ से प्रारंभ होने वाले शब्द होते हैं और अन्त में ‘ह’ से प्रारंभ होने वाले शब्द। प्रत्येक शब्द से प्रारंभ होने वाले शब्द भी हजारों की संख्या में होते हैं, अतः शब्द–कोश में उनका क्रम–विन्यास विभिन्न स्वरों की मात्राओँ के अग्र क्रम में होता है– ं ँ ा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ । • उदाहरण – 1. आधा वर्ण उस वर्ण की ‘औ’ की मात्रा के बाद आता है। जैसे– कटौती के बाद कट्टर, करौ के बाद कर्क, कसौ के बाद कस्त, कौस्तु के बाद क्य, क्योँ के बाद क्रं... क्र... क्ल... क्व आदि। 2. ‘ृ ’ की मात्रा ‘ऊ’ की मात्रा वाले वर्ण के बाद आती है। जैसे– कूक, कूल के बाद कृत। 3. ‘क्ष’ वर्ण आधे ‘क्’ के बाद आता है। जैसे– क्विँटल के बाद क्षण। 4. ‘ज्ञ’ अक्षर ‘जौ’ के अंतिम शब्द के बाद आता है। जैसे– जौहरी के बाद ज्ञ...

आदर्श प्रेम (कविता)

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कविता - आदर्श प्रेम  कवि - हरिवंशराय बच्चन कविता का आरंभ  प्यार किसी को करना लेकिन कह कर उसे बताना क्या अपने को अर्पण करना पर और को अपनाना क्या गुण का ग्राहक बनना लेकिन गा कर उसे सुनाना क्या मन के कल्पित भावों से औरों को भ्रम में लाना क्या ले लेना सुगंध सुमनों की तोड़ उन्हें मुरझाना क्या प्रेम हार पहनाना लेकिन प्रेम पाश फैलाना क्या त्याग अंक में पले प्रेम शिशु उनमें स्वार्थ बताना क्या दे कर हृदय हृदय पाने की आशा व्यर्थ लगाना क्या धन्यवाद 🙏

क्षण भर को क्यों प्यार किया था? (कविता)

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कविता - क्षण भर को क्यों प्यार किया था?  कवि - हरिवंशराय बच्चन कविता का आरंभ  क्षण भर को क्यों प्यार किया था? अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर, पलक संपुटों में मदिरा भर तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था? क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ‘यह अधिकार कहाँ से लाया?’ और न कुछ मैं कहने पाया - मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था! क्षण भर को क्यों प्यार किया था? वह क्षण अमर हुआ जीवन में, आज राग जो उठता मन में - यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था! क्षण भर को क्यों प्यार किया था? धन्यवाद 🙏

बहुत दिनों से (कविता)

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कविता - बहुत दिनों से  कवि - गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का आरंभ  मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से बहुत-बहुत सी बातें तुमसे कहना चाह रहा था और कि साथ यों साथ-साथ फिर बहना बहना बहना मेघों की आवाज़ों से कुहरे की भाषाओं से रंगों के उद्भासों से ज्यों नभ का कोना-कोना है बोल रहा धरती से जी खोल रहा धरती से त्यों चाह रहा कहना उपमा संकेतों से रूपक से, मौन प्रतीकों से मैं बहुत दिनों से बहुत-बहुत-सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना! जैसे मैदानों को आसमान, कुहरे की मेघों की भाषा त्याग बिचारा आसमान कुछ रूप बदलकर रंग बदलकर कहे। धन्यवाद 🙏

सच न बोलना (कविता)

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कविता - सच न बोलना  कवि - नागार्जुन कविता का आरंभ  मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को! जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा! सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा! जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है! बंद सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे।  ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का, फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका! बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे! भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे! ज़मींदार है, साहुकार है, बनिया है, व्योपारी है, अंदर-अंदर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है! सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मंदिर एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर! छुट्टा घूमें डाकू गुंडे, छुट्टा घूमें हत्यारे, देखो, हंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे! जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा, काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा! माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं! ...

प्रेम नई मनः स्थिति (कविता)

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कविता - प्रेम नई मनः स्थिति कवि -  रघुवीर सहाय कविता का आरंभ  दुखी दुखी हम दोनों आओ बैठें  अलग अलग देखें , आँखों में नहीं हाथ में हाथ न लें हम लिए हाथ में हाथ न बैठे रह जाएँ बहुत दिनों बाद आज इतवार मिला है ठहरी हुई दुपहरी ने यह इत्मीनान दिलाया है।  हम दुख में भी कुछ देर साथ रह सकते हैं। झुँझलाए बिना , बिना ऊबे अपने अपने में , एक दूसरे में, या  दुख में नहीं, सोच में नहीं  सोचने में डूबे। क्या करें? क्या हमें करना है? क्या यही हमे करना होगा क्या हम दोनो आपस ही में निबटा लेंगे  झगड़ा जो हममे और हमारे सुख में है।  धन्यवाद 🙏

सखि वे मुझसे कह कर जाते (कविता)

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कविता - सखि वे मुझसे कह कर जाते  कवि - मैथिलीशरण गुप्त कविता का आरंभ  सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते? मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना? मैंने मुख्य उसी को जाना जो वे मन में लाते। सखि, वे मुझसे कहकर जाते। स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में - क्षात्र-धर्म के नाते  सखि, वे मुझसे कहकर जाते। हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा, किसपर विफल गर्व अब जागा? जिसने अपनाया था, त्यागा; रहे स्मरण ही आते! सखि, वे मुझसे कहकर जाते। नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते, पर इनसे जो आँसू बहते, सदय हृदय वे कैसे सहते ? गये तरस ही खाते! सखि, वे मुझसे कहकर जाते। जायें, सिद्धि पावें वे सुख से, दुखी न हों इस जन के दुख से, उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ? आज अधिक वे भाते! सखि, वे मुझसे कहकर जाते। गये, लौट भी वे आवेंगे, कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे, रोते प्राण उन्हें पावेंगे, पर क्या गाते-गाते ? सखि, वे मुझसे कहकर जाते। धन्यवाद 🙏

चेतना (कविता)

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कविता - चेतना  कवि - मैथिलीशरण गुप्त कविता का आरंभ  अरे भारत! उठ, आँखें खोल, उड़कर यंत्रों से, खगोल में घूम रहा भूगोल! अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है। तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है, पल पल है अनमोल। अरे भारत! उठ, आँखें खोल बहुत हुआ अब क्या होना है, रहा सहा भी क्या खोना है? तेरी मिट्टी में सोना है, तू अपने को तोल। अरे भारत! उठ, आँखें खोल दिखला कर भी अपनी माया, अब तक जो न जगत ने पाया; देकर वही भाव मन भाया, जीवन की जय बोल। अरे भारत! उठ, आँखें खोल तेरी ऐसी वसुन्धरा है- जिस पर स्वयं स्वर्ग उतरा है। अब भी भावुक भाव भरा है, उठे कर्म-कल्लोल। अरे भारत! उठ, आँखें खोल धन्यवाद 🙏

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ (कविता)

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कविता - ऐसे मैं मन बहलाता हूँ  कवि - हरिवंशराय बच्चन कविता का आरंभ  सोचा करता बैठ अकेले, गत जीवन के सुख-दुख झेले, दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! नहीं खोजने जाता मरहम, होकर अपने प्रति अति निर्मम, उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! आह निकल मुख से जाती है, मानव की ही तो छाती है, लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! धन्यवाद 🙏

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

आज हम हिंदी की परीक्षा में बार-बार पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर करेंगे  हिंदी व्याकरण 100 महत्वपूर्ण प्रश्न हिंदी मानक वर्णमाला में कुल कितने वर्ण हैं? – 52 अंतस्थ व्यंजन की संख्या कितनी है? – 4 स्वरों की संख्या कितनी मानी गई है? – 11 हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति कहां से हुई? – सिंधु से हिंदी वर्णमाला को कितने भागों में विभक्त किया गया है? – दो भागों में हिंदी वर्णमाला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या कितनी है? – 25 मात्रा के आधार पर हिंदी स्वरों के दो भेद कौन-कौन से हैं? – हस्वर एवं दीर्घ हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या कितनी है? – 33 पंचतंत्र क्या है? – कहानी संग्रह इंदिरापति किसे कहा जाता है? – विष्णु को कबीरदास की भाषा कौन सी थी? – सधुक्कडी  प्रगतिवाद उपयोगितावाद का दूसरा नाम है यह किसका कथन है? – रामविलास शर्मा रामचरितमानस में कुल कितने कांड हैं? – सात हिंदी साहित्य के इतिहास के रचयिता है? – आचार्य रामचंद्र शुक्ल कलम का जादूगर किसे कहा जाता है? – रामवृक्ष बेनीपुरी गीत गोविंद किस भाषा में लिखा गया है? – संस्कृत भाषा में किसे लोकनायक कहा जाता है? – तुलसीदास जी को व...

राह तो एक थी (कविता)

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कविता - राह तो एक थी कवि-  शमशेर बहादुर सिंह कविता का आरंभ  राह तो एक थी हम दोनों की आप किधर से आए गए हम जो लुट गए पिट गए, आप तो राजभवन में पाए गए किस लीला युग में आ पहुँचे अपनी सदी के अंत में हम  नेता, जैसे घास फूस के रावण खड़े कराए गए जितना ही लाउडस्पीकर चीख़ा उतना ही ईश्वर दूर हुआ  उतने ही दंगे फैले जितने 'दीन धरम' फैलाए गए दादा की गोद में पोता बैठा 'महबूबा! महबूबा गाए दादी बैठी मूड़ हिलाए हम किस जुग में आए गए गीत ग़ज़ल है फ़िल्मी लय में शुद्ध गलेबाज़ी शमशेर  आज कहां वो गीत जो कल थे गलियों गलियों गाए गए धन्यवाद 

हिंदी साहित्य में प्रमुख दर्शन

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प्रमुख दर्शन अद्वैतवाद ------------------------- शंकराचार्य  विशिष्टाद्वैतवाद --------------------- रामानुजाचार्य  द्वैतवाद –------------------------------- माधवाचार्य  द्वैताद्वैतवाद --------------------------- निंबार्क  शुद्धाद्वैतवाद ------------------------- बल्लभाचार्य  मीमांसा दर्शन -------------------------- जैमिनी सांख्य दर्शन --------------------------- कपिलमुनि  योगदर्शन ------------------------------- पतंजलि  न्यायदर्शन –---------------------------- गौतम वैशेषिक दर्शन -------------------------- कणाद  चर्वाक (लोकायत) दर्शन ------------ म्वार्हस्पत्य जैन दर्शन (स्यादवाद) -------------- पार्श्वनाथ  संघातवाद (क्षणिकवाद) –----------- गौतमबुद्ध  धन्यवाद 

मैं उनका ही होता (कविता)

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कविता - मैं उनका ही होता कवि - गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का आरंभ  मैं उनका ही होता जिनसे मैंने रूप भाव पाए हैं। वे मेरे ही हिये बंधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं। मेरे शब्द, भाव उनके हैं मेरे पैर और पथ मेरा, मेरा अंत और अथ मेरा, ऐसे किंतु चाव उनके हैं। मैं ऊँचा होता चलता हूँ उनके ओछेपन से गिर-गिर, उनके छिछलेपन से खुद-खुद, मैं गहरा होता चलता हूँ। धन्यवाद 🙏

मुझे कदम-कदम पर (कविता)

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कविता - मुझे कदम-कदम पर  कवि - गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का आरंभ  मुझे कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं बांहें फैलाए! एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटतीं, मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ, बहुत अच्छे लगते हैं उनके तजुर्बे और अपने सपने सब सच्चे लगते हैं, अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है, मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ, जाने क्या मिल जाए! मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है, हर एक छाती में आत्मा अधीरा है प्रत्येक सस्मित में विमल सदानीरा है, मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य पीडा है, पलभर में मैं सबमें से गुजरना चाहता हूँ, इस तरह खुद को ही दिए-दिए फिरता हूँ, अजीब है जिंदगी! बेवकूफ बनने की खातिर ही सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ, और यह देख-देख बडा मजा आता है कि मैं ठगा जाता हूँ हृदय में मेरे ही, प्रसन्नचित्त एक मूर्ख बैठा है हंस-हंसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है, कि जगत स्वायत्त हुआ जाता है। कहानियां लेकर और मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते जहां जरा खडे होकर बातें कुछ करता हूँ उपन्यास मिल जाते । धन्यवाद 🙏

सब जीवन बीता जाता है (कविता)

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कविता - सब जीवन बीता जाता है  कवि - जयशंकर शंकर प्रसाद  कविता का आरंभ  सब जीवन बीता जाता है धूप छाँह के खेल सदॄश सब जीवन बीता जाता है समय भागता है प्रतिक्षण में, नव-अतीत के तुषार-कण में, हमें लगा कर भविष्य-रण में, आप कहाँ छिप जाता है सब जीवन बीता जाता है बुल्ले, नहर, हवा के झोंके, मेघ और बिजली के टोंके, किसका साहस है कुछ रोके, जीवन का वह नाता है सब जीवन बीता जाता है वंशी को बस बज जाने दो, मीठी मीड़ों को आने दो, आँख बंद करके गाने दो जो कुछ हमको आता है सब जीवन बीता जाता  धन्यवाद 🙏

खुला आसमान (गीत)

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गीत - खुला आसमान  गीतकार - सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" गीत का आरंभ  बहुत दिनों बाद खुला आसमान निकली है धूप, खुश हुआ जहान दिखी दिशाएँ, झलके पेड़, चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़, खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़ लड़कियाँ घरों को कर भासमान। लोग गाँव-गाँव को चले, कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले जाँघिया-लँगोटा ले, सँभले, तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान। पनघट में बड़ी भीड़ हो रही, नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी, बातें करती हैं वे सब खड़ी, चलते हैं नयनों के सधे बाण। धन्यवाद  🙏

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